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Kavita Kosh से
वो अपना मौसम बना रहे हैं,हम अपने ग़म को भुला रहे हैं
न लफ़्ज़ कोई,न लब पे जुम्बिश जुंबिश कलाम आँखों से हो रहा है
उन्हें हम अपनी सुना रहे हैं,हमें वो अपनी सुना रहे हैं
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