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अभी तुम्हारी ज़मीं से ऊपर उड़ान है ना
पलट के आना है फिर यहीं पर, ये ध्यान है ना

यहाँ पे खेती, सयानी बेटी, हैं एक जैसी
दहेज़ भी तो समाज में अब लगान है ना

भरी है मण्डी, सजी दुकानें मगर इधर वो
उगा के फसलें पड़ा है भूखा, किसान है ना

गुलाम क़दमों तले पड़ा था, पर उसका बेटा
उबल पड़ा, नासमझ है थोड़ा, जवान है ना

तमाम चर्चे, तमाम खर्चे, तमाम कर्जे
मगर हमारा वतन अभी तक महान है ना ।<poem/>