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खैरातों पर हर कोई मुंह फाड़े आता है

जाने क्यों संकोच हमारे आड़े आता है


भाई, भतीजा, बेटी, बेटे, रिश्ते, नातेदार

दुश्मन अपनी जीत के झंडे गाडे आता है


कुहरे में छुप जाते हैं जंगल, पर्वत, आकाश

लेकिन कुहरा भी तो जाड़े-जाड़े आता है


झोंपड़पट्टी में अब सूरज रोज़ नहीं उगता

हुक्म दिया करते हैं जब रजवाडे , आता है


मुनिया को अब फ़िक्र नहीं है रोटी कपड़े की

एक फ़रिश्ता रात गए पिछवाडे आता है॥<poem/>