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[[Category:गज़ल]]
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हिज्र की पहली शाम के साये दूर उफ़क़ तक छाये थे
हम जब उसके शहर से निकले सब रास्ते सँवलाये थे
हिज्र जाने वो क्या सोच रहा था अपने दिल में सारी रातप्यार की पहली शाम बातें करते करते उस के साये दूर उफ़क़ तक छाये थे <br>हम जब उसके शहर से निकले सब रास्ते सँवलाये नैन भर आये थे <br><br>
जाने वो क्या सोच रहा था मेरे अन्दर चली थी आँधी ठीक उसी दिन पतझड़ कीजिस दिन अपने दिल जूड़े में सारी रात <br>प्यार की बातें करते करते उस के नैन भर आये उसने कुछ फूल सजाये थे <br><br>
मेरे अन्दर चली थी आँधी ठीक उसी दिन पतझड़ की <br>उसने कितने प्यार से अपना कुफ़्र दिया नज़राने मेंजिस दिन हम अपने जूड़े में उसने कुछ फूल सजाये ईमान का सौदा जिससे करने आये थे <br><br>
उसने कितने प्यार कैसे जाती मेरे बदन से अपना कुफ़्र दिया नज़राने में <br>बीते लम्हों की ख़ुश्बूख़्वाबों की उस बस्ती में कुछ फूल मेरे हम अपने ईमान का सौदा जिससे करने आये -साये थे <br><br>
कैसे जाती मेरे बदन से बीते लम्हों की ख़ुश्बू <br>कैसा प्यारा मंज़र था जब देख के अपने साथी कोख़्वाबों की उस बस्ती में कुछ फूल मेरे हम-साये पेड़ पे बैठी इक चिड़िया ने अपने पर फैलाये थे<br><br>
कैसा प्यारा मंज़र था जब देख के अपने साथी को <br>पेड़ पे बैठी इक चिड़िया ने अपने पर फैलाये थे <br><br> रुख़्सत के दिन भीगी आँखों उसका वो कहना हाए "क़तील"<br>तुम को लौट ही जाना था तो इस नगरी क्यूँ आये थे <br><br/poem>
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