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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
'''उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर मंतर सब
चाक़ू वाक़ू, छुरियां वुरियां, ख़ंजर वंजर सब
फीके पड़ गए कपड़े वपड़े, ज़ेवर वेवर सब
आखिर मै किस दिन दुबुन्गा डूबूँगा फिक्रें करते है
कश्ती, वश्ती, दरिया वरिया लंगर वंगर सब
'''