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Kavita Kosh से
|रचनाकार=इक़बाल
}}
{{KKCatNazm}}खुदा ख़ुदा से हुस्न ने इक रोज़ ये सवाल किया<br/>
जहाँ में क्यों ना मुझे तुने लाज़वाल किया।<br/><br/>
मिला जवाब के तस्वीरखाना तस्वीरख़ाना है दुनिया<br/>
शबे-दराज़ अदम का फसाना है दुनिया।<br/><br/>
है रंगे-तगय्युरसे तगय्युर से जब नमूद इसकी<br/>
वही हसीन है हक़ीकत ज़वाल है इसकी।<br/><br/>
कहीं क़रीब था, ये गुफ्तगू क़मरने क़मर ने सुनी<br/>फ़लकपे फ़लक पे आम हुवी, अख्तरे-सहरने सहर ने सुनी।<br/><br/>
भर आये फूलके आँसू पयामे-शबनमसेशबनम से<br/>कलीका नन्हासा कली का नन्हा-सा दिल खून हो गया ग़मसे।ग़म से।<br/><br/>