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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पूनम तुषामड़ |संग्रह=माँ मुझे मत दो / पूनम तुषाम…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पूनम तुषामड़
|संग्रह=माँ मुझे मत दो / पूनम तुषामड़
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मारो छीन लो
निचोड़ लो
हमारी नस-नस से
लहू की आखिरी बूंद
और कहते रहो
खामोश....
आवाज मत निकालो
आंखों में आंखें मत डालो
सदी दर सदी
यही किया है तुमने
पर अब नहींअ
ब गांव, शहर
और हर गली-कूचे से
होती हुई
गरज़ती आवाज
जो फाड़ डालेगी
तुम्हारे कान के पर्दे
जिन्हें पसंद है
सिर्फ - घिघियाना
और गिड़गिड़ाना
तुम्हारे चाबुक की
चोट का जवाब
देंगे तुम्हें अब हम
आखिर दर्द का स्वाद
तुम भी तो चखो।।
</poem>
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|रचनाकार=पूनम तुषामड़
|संग्रह=माँ मुझे मत दो / पूनम तुषामड़
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मारो छीन लो
निचोड़ लो
हमारी नस-नस से
लहू की आखिरी बूंद
और कहते रहो
खामोश....
आवाज मत निकालो
आंखों में आंखें मत डालो
सदी दर सदी
यही किया है तुमने
पर अब नहींअ
ब गांव, शहर
और हर गली-कूचे से
होती हुई
गरज़ती आवाज
जो फाड़ डालेगी
तुम्हारे कान के पर्दे
जिन्हें पसंद है
सिर्फ - घिघियाना
और गिड़गिड़ाना
तुम्हारे चाबुक की
चोट का जवाब
देंगे तुम्हें अब हम
आखिर दर्द का स्वाद
तुम भी तो चखो।।
</poem>