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रचनाकारः [[सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]]
[[Category:कविताएँ]]
[[Category:सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]]
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उमड़ सृष्टि के अन्तहीन अम्बर से,<br>
घर से क्रीड़ारत बालक-से,<br>
ऐ अनन्त के चंचल शिशु सुकुमार !<br>
स्तब्ध गगन को करते हो तुम पार !<br>
अन्धकार-- घन अन्धकार ही<br>
क्रीड़ा का आगार।<br>
चौंक चमक छिप जाती विद्युत<br>
तडिद्दाम अभिराम,<br>
तुम्हारे कुंचित केशों में<br>
अधीर विक्षुब्ध ताल पर<br>
एक इमन का-सा अति मुग्ध विराम।<br>
वर्ण रश्मियों-से कितने ही<br>
छा जाते हैं मुख पर--<br>
जग के अंतस्थल से उमड़<br>
नयन पलकों पर छाये सुख पर;<br>
रंग अपार<br>
किरण तूलिकाओं से अंकित<br>
इन्द्रधनुष के सप्तक, तार; --<br>
व्योम और जगती के राग उदार<br>
मध्यदेश में, गुडाकेश !<br>
गाते हो वारम्वार।<br>
मुक्त ! तुम्हारे मुक्त कण्ठ में<br>
स्वरारोह, अवरोह, विघात,<br>
मधुर मन्द्र, उठ पुनः पुनः ध्वनि<br>
छा लेती है गगन, श्याम कानन,<br>
सुरभित उद्यान, <br>
झर-झर-रव भूधर का मधुर प्रपात।<br>
वधिर विश्व के कानों में<br>
भरते हो अपना राग,<br>
मुक्त शिशु पुनः पुनः एक ही राग अनुराग।<br>
रचनाकारः [[सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]]
[[Category:कविताएँ]]
[[Category:सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]]
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उमड़ सृष्टि के अन्तहीन अम्बर से,<br>
घर से क्रीड़ारत बालक-से,<br>
ऐ अनन्त के चंचल शिशु सुकुमार !<br>
स्तब्ध गगन को करते हो तुम पार !<br>
अन्धकार-- घन अन्धकार ही<br>
क्रीड़ा का आगार।<br>
चौंक चमक छिप जाती विद्युत<br>
तडिद्दाम अभिराम,<br>
तुम्हारे कुंचित केशों में<br>
अधीर विक्षुब्ध ताल पर<br>
एक इमन का-सा अति मुग्ध विराम।<br>
वर्ण रश्मियों-से कितने ही<br>
छा जाते हैं मुख पर--<br>
जग के अंतस्थल से उमड़<br>
नयन पलकों पर छाये सुख पर;<br>
रंग अपार<br>
किरण तूलिकाओं से अंकित<br>
इन्द्रधनुष के सप्तक, तार; --<br>
व्योम और जगती के राग उदार<br>
मध्यदेश में, गुडाकेश !<br>
गाते हो वारम्वार।<br>
मुक्त ! तुम्हारे मुक्त कण्ठ में<br>
स्वरारोह, अवरोह, विघात,<br>
मधुर मन्द्र, उठ पुनः पुनः ध्वनि<br>
छा लेती है गगन, श्याम कानन,<br>
सुरभित उद्यान, <br>
झर-झर-रव भूधर का मधुर प्रपात।<br>
वधिर विश्व के कानों में<br>
भरते हो अपना राग,<br>
मुक्त शिशु पुनः पुनः एक ही राग अनुराग।<br>
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