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{{KKRachna
|रचनाकार=गुलज़ार
|संग्रह = पुखराज / गुलज़ार
}}
{{KKCatNazm}}
<poem>
रात में देखो झील का चेहरा
किस कदर पाक,पुर्सुकुं,गमगीं
कोई साया नहीं है पानी पर
कोई सिलवट नहीं है आँखों में
नीन्द आ जाये दर्द को जैसे
जैसे मरियम उडाद बैठी हो
जैसे चेहरा हटाके चेहरे का
सिर्फ एहसास रख दिया हो वहाँ
</poem>
|रचनाकार=गुलज़ार
|संग्रह = पुखराज / गुलज़ार
}}
{{KKCatNazm}}
<poem>
रात में देखो झील का चेहरा
किस कदर पाक,पुर्सुकुं,गमगीं
कोई साया नहीं है पानी पर
कोई सिलवट नहीं है आँखों में
नीन्द आ जाये दर्द को जैसे
जैसे मरियम उडाद बैठी हो
जैसे चेहरा हटाके चेहरे का
सिर्फ एहसास रख दिया हो वहाँ
</poem>