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मरियम / गुलज़ार

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रात में देखो झील का चेहरा
किस कदर पाक,पुर्सुकुं,गमगीं
कोई साया नहीं है पानी पर
कोई सिलवट नहीं है आँखों में
नीन्द आ जाये दर्द को जैसे
जैसे मरियम उडाद बैठी हो

जैसे चेहरा हटाके चेहरे का
सिर्फ एहसास रख दिया हो वहाँ
</poem>
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