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{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’
|संग्रह=आदमी नहीं है / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
शहर से आ कर
देती है दस्तक
गांव की दलीज पर
और बताती है;
शहर में
निरा अंधेरा है
देखो
मेरा बदन
अंधेरोम ने घेरा है
तुम कभी
शहर मत जाना
मगर
गांव सड़क की भाषा
नहीं जानता
वह
मान बैठता है
सड़क को
शहर आने का निमंत्रण
और
उस पर चल कर
खो जाता है अंधेरों में
फिर नहीं आ पाता
कभी लौट कर
अपने भीतर।
</poem>
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|रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’
|संग्रह=आदमी नहीं है / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
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<Poem>
शहर से आ कर
देती है दस्तक
गांव की दलीज पर
और बताती है;
शहर में
निरा अंधेरा है
देखो
मेरा बदन
अंधेरोम ने घेरा है
तुम कभी
शहर मत जाना
मगर
गांव सड़क की भाषा
नहीं जानता
वह
मान बैठता है
सड़क को
शहर आने का निमंत्रण
और
उस पर चल कर
खो जाता है अंधेरों में
फिर नहीं आ पाता
कभी लौट कर
अपने भीतर।
</poem>