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डांगला पर बैठी शांति / अशोक लव

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डांगला पर बैठी है भील लड़की शांति
किताबें खोले
पढ़ रही है
कर रही है स्कूल से मिला होम वर्क |

नीचे झोपड़ी में माँ है
छोटे भाई रामफल और डानी हैं
चाचा की बेटियाँ दनीषा और झूमरी हैं |
दोनों बहुत झगड़ती हैं
दोनों बहुत चिल्लाती हैं
उसकी किताबें उठाकर भाग जाती हैं |
छोटा भाई रामफल
उसकी कापियाँ छीन लेता है
कापियों के पन्नों पर खींच देता है
आड़ी-तिरछी लकीरें |

इन सबसे बचकर
आ बैठी है शांन्ति पढ़ने
नीम के पेड़ से सटे डांगला पर
बापू ने बार-बार कहने पर
ला दी हैं दो कापियां
दस-दस रुपयों वाली |

शांति देखती है
खुली कापियों-किताबों में
बड़े-बड़े सपने
दूर-दूर तक फैले
विन्ध्य पर्वत के पार की दुनिया के
और उस दुनिया में जाने के सपने

डूंगर गावँ की पुआल और खपरैल की झोपड़ियों से दूर
बसे हैं शहर दिल्ली, मुंबई
वह देखती है इन्ही किताबों में बने नक्शों पर
छूती है उन्हें अपने छोटे-छोटे हाथों से
वह रखना चाहती है उन पर
अपने पावँ |

सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली शांति
बाँसों पर टिके
पुआल बिछे
दांगला पर बैठकर
उड़ना चाहती है
वह छूना चाहती है आसमान
इसलिए खूब पढ़ती है |

वह जाती है रोज़ाना स्कूल
चलकर चार किलोमीटर
वह लौटती स्कूल से रोज़ाना
चार किलोमीटर चलकर |

गावँ से दूर है झाबुआ शहर
वह पार करती है ऊबड़-खाबड़ रास्ते
और जाती है स्कूल
वह जानती है
यही ऊबड़-खाबड़ रास्ता
ले जायेगा एक दिन
उसके सपनों की दुनिया में
इसलिए खूब पढ़ती है शांति
मन लगाकर पढ़ती है शांति |
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