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नया पृष्ठ: सभी सरसब्ज मौसम के नये सपने दिखाते हैं<br /> हमें मालूम है वो किस तरह …
सभी सरसब्ज मौसम के नये सपने दिखाते हैं<br />
हमें मालूम है वो किस तरह वादे निभाते हैं।<br />
इलेक्शन में हुनर, जादूगरी सब देखिए इनकी<br />
ये हर भाषण में सड़कें और टूटे पुल बनाते हैं।<br />
चलो मिल जाएगी उस वक्त पे दो वक्त की रोटी<br />
हम इस मकसद से जिन्दाबाद के नारे लगाते हैं।<br />
हमारा सच कभी देखा नहीं है इनकी आंखों ने<br />
हमारे रहनुमा किस रंग का चश्मा लगते हैं।<br />
अभी हर शखस के घर का पता मालूम हैं इनको<br />
सदन में जाके ये पूरा इलाका भूल जाते हैं।<br />
पुरानी साइकिल, हाथी, कमल, पंजा नया क्या है<br />
हमें हर बार ये देखा हुआ सर्कस दिखाते हैं।<br />
हमारे वोट से संसद में नाकाबिल पहुंचते हैं<br />
जो काबिल हैं गुनाहों से हमारे हार जाते हैं।<br />
वो साहब हैं उन्हें हर काम के खातिर हैं चपरासी<br />
हम अपना बोझ अपने हाथ से सिर पर उठाते हैं।<br />
तबाही देखते हैं वो हमारी वायुयानों से<br />
हम दरिया में बिना कश्ती के ही गोता लगाते हैं।<br />
जो सत्ता में है वो सूरज उगा लेते हैं रातों को<br />
हमारे घर दीये बस सांझ को ही टिमटिमाते हैं।<br />
भंवर में घूमती कश्ती के हम ऐसे मुसाफिर हैं<br />
न हम इस पार आते हैं न हम उस पार जाते हैं।<br />
ये संसद हो गयी बाजार इसके मायने क्या हैं<br />
बिके प्यादों से हम सरकार का बहुमत जुटाते हैं।<br />
हमें मालूम है वो किस तरह वादे निभाते हैं।<br />
इलेक्शन में हुनर, जादूगरी सब देखिए इनकी<br />
ये हर भाषण में सड़कें और टूटे पुल बनाते हैं।<br />
चलो मिल जाएगी उस वक्त पे दो वक्त की रोटी<br />
हम इस मकसद से जिन्दाबाद के नारे लगाते हैं।<br />
हमारा सच कभी देखा नहीं है इनकी आंखों ने<br />
हमारे रहनुमा किस रंग का चश्मा लगते हैं।<br />
अभी हर शखस के घर का पता मालूम हैं इनको<br />
सदन में जाके ये पूरा इलाका भूल जाते हैं।<br />
पुरानी साइकिल, हाथी, कमल, पंजा नया क्या है<br />
हमें हर बार ये देखा हुआ सर्कस दिखाते हैं।<br />
हमारे वोट से संसद में नाकाबिल पहुंचते हैं<br />
जो काबिल हैं गुनाहों से हमारे हार जाते हैं।<br />
वो साहब हैं उन्हें हर काम के खातिर हैं चपरासी<br />
हम अपना बोझ अपने हाथ से सिर पर उठाते हैं।<br />
तबाही देखते हैं वो हमारी वायुयानों से<br />
हम दरिया में बिना कश्ती के ही गोता लगाते हैं।<br />
जो सत्ता में है वो सूरज उगा लेते हैं रातों को<br />
हमारे घर दीये बस सांझ को ही टिमटिमाते हैं।<br />
भंवर में घूमती कश्ती के हम ऐसे मुसाफिर हैं<br />
न हम इस पार आते हैं न हम उस पार जाते हैं।<br />
ये संसद हो गयी बाजार इसके मायने क्या हैं<br />
बिके प्यादों से हम सरकार का बहुमत जुटाते हैं।<br />