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गलती हुई होगी / उदयप्रताप सिंह

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|रचनाकार=उदयप्रताप सिंह
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हमारे घर की दीवारों में अनगिनत दरारें हैं
 सुनिश्चित है कहीं बुनियाद में गलती ग़लती हुई होगी । 
क़ुराने पाक, गीता, ग्रन्थ साहिब शीश धुनते हैं
 
हमारे भाव के अनुवाद में गलती हुई होगी ।
 
जो सब कुछ जल गया फिर राख से सीखें तो क्या सीखें,
 हवा और आग के संवाद में गलती ग़लती हुई होगी । 
हमारे पास सब कुछ है मगर दुर्भाग्य से हारे
 
कहीं अंदर से चिनगारी कहीं बाहर से अंगारे ।
 
गगन से बिजलियाँ कडकी धारा से ज़लज़ले आए
 
यही क्या कम हैं हम इतिहास से जीवित चले आए ।
 
हमारे अधबने इस नीड़ का नक्शा बताता है
 कि कुछ प्रारंभ में कुछ बाद में गलती ग़लती हुई होगी ।</poem>
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