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मेरे लिए भी कोई सोचता है
अँधेरे में तारों की रोशनी में उसे देखता हूँ
दूर खिड़की पर उदास खड़ी है. दबी हुई मुस्कान
जो दिन भर उसे दिगन्त तक फैलाए हुए थी
इस वक्त वक़्त बहुत दब गई है.।
अनगिनत सीमाओं पार खिड़की पर वह उदास है.।उसके खयालों ख़यालों में मेरी कविताएँ हैं. । सीमाएँ पारकरते हुए गोलीबारी में कविताएँ हैं लहूलुहान.।
वह मेरी हर कविता की शुरुआत.।वह काश्मीर के बच्चों की उदासी.।वह मेरा बसन्त, मेरा नवगीत, वह मुर्झाई -सी.।</poem>