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{{KKRachna
|रचनाकार = आलोक धन्वा
}}
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<poem>
आह जंक्शन !
रेलें जहाँ देर तक रुकती हैं
बाक़ी सफ़र के लिए पानी लेती हैं
मैं ढूँढता हूँ वहाँ
अपने पुराने हमसफ़र।
(1994)
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|रचनाकार = आलोक धन्वा
}}
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आह जंक्शन !
रेलें जहाँ देर तक रुकती हैं
बाक़ी सफ़र के लिए पानी लेती हैं
मैं ढूँढता हूँ वहाँ
अपने पुराने हमसफ़र।
(1994)