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<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
<td rowspan=2> <font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
<td> '''शीर्षक : एक नाम अधरों पर आयाजहाँ भर में हमें बौना बनावे धर्म का चक्कर<br> '''रचनाकार:''' [[कन्हैयालाल नंदनपुरुषोत्तम यक़ीन]]</td>
</tr>
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<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
एक नाम अधरों पर आयाजहाँ भर में हमें बौना बनावे धर्म का चक्करअंग-अंग चन्दन वन हो गया।हैं इंसाँ हिंदू, मुस्लिम, सिख बतावे धर्म का चक्कर
बोल हैं कि वेद की ऋचाएँ?ये कैसा अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का है झगड़ासाँसों करोड़ों को हज़ारों में सूरज उग आएआँखों में ऋतुपति के छन्दतैरने लगेमन सारा नील गगन हो गया।गिनावे धर्म का चक्कर
गन्ध गुंथी बाहों का घेराजैसे मधुमास का सवेराफूलों चमन में फ़ूल ख़ुशियों के खिलाने की भाषा मेंजगह लोगोंदेह बोलने लगीपूजा बुलों को खून के आँसू रुलावे धर्म का एक जतन हो गया।चक्कर
कभी शायद सिखावे था मुहब्बत-मेल लोगों को
सबक नफ़रत का लेकिन अब पढ़ावे धर्म का चक्कर
पानी पर खींचकर लकींरेंसियासत की बिछी शतरंज के मुहरे समझ हम कोकाट नहीं सकते जंज़ीरें।जिधर मर्जी उठावे या बिठावे धर्म का चक्करआसपासअजनबी अंधेरों के डेरे यक़ीनन कुर्सियाँ हिलने लगेंगी ज़ालिमों की फ़िरकिसी भी तौर से बस टूट जावे धर्म का चक्कर मज़ाहिब करते हैंज़ालिम हुकूमत की तरफ़दारीनिज़ामत ज़ुल्म की अक्सर बचावे धर्म का चक्कर निकलने ही नहीं देता जहालत के अँधेरे सेअग्निबिन्दु "यक़ीन" ऎसा अजब चक्कर चलावे धर्म का चक्करऔर सघन हो गया! </poem>
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