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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=सत्यनारायण सोनी |संग्रह=}}{{KKCatKavita‎}}<poemPoem>यह महानगर की
एक पतली गली,
गली में इमारतें
ऊँची-नीची
बहुमंजिली।बहुमंज़िली ।
इन्हीं के बीच
भींतों वाला
एक पुराना घर,
गारे-माटी से निर्मित।निर्मित ।जमाने ज़माने पुराने
किंवाड़ काठ के
बड़े-बड़े पल्लों वाले,
खुले हुए हैं
और दरवाजे दरवाज़े पर
एक बुढिय़ा
घाघरा-कुरती पहने,
गली टिपतों को,
आँखों पर अपने
दांए दाँए हाथ से छतर बनाए।बनाए ।
वह देखो,
बाखळ में
मैं-मैं करती बकरियां बकरियाँ और आँगन में पळींडा भी।भी ।
अहा,
किस तरह
मुस्करा रहा है
एक टुकड़ा गाँव।गाँव ।
</poem>
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