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{{KKRachna
| रचनाकार= द्विजेन्द्र 'द्विज'
}}
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किनारे अकेले रह कर भी
किनारे नहीं होते
किनारों के बीच बहती है
एक नदी
लाती है सन्देश
सुनाती है कहानियाँ
परीलोक की
मरुस्थल में बहाती है पानी.
किनारों का मिलना
इस नदी का मिट जाना है
नदी के बहने में ही
अस्तित्व है किनारों का
नदी ही तो बहती है
इस पार
उस पार
इस पार
उस पार.
</poem>
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| रचनाकार= द्विजेन्द्र 'द्विज'
}}
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किनारे अकेले रह कर भी
किनारे नहीं होते
किनारों के बीच बहती है
एक नदी
लाती है सन्देश
सुनाती है कहानियाँ
परीलोक की
मरुस्थल में बहाती है पानी.
किनारों का मिलना
इस नदी का मिट जाना है
नदी के बहने में ही
अस्तित्व है किनारों का
नदी ही तो बहती है
इस पार
उस पार
इस पार
उस पार.
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