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Kavita Kosh से
दुनिया कैती कामणगारो, अपने जुग को छैलो हो ।
पण बैरी की डाढ रूपि ना, इतनों बळ हो लाठी मैं ।
तन को बळ मन को जोश झळकणो ,मूंछा हाली आंटी मै ।।
इब तो म्हारो राम रूखाळो, मिलगा दोनूं पाट भायला ।
पोळी मै खाट भायला ।।