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चक्की पर गेहूं लिए खड़ा / भारत भूषण
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13:58, 16 नवम्बर 2010
<poem>
चक्की पर गेँहू लिए खड़ा मै सोच रहा उखड़ा उखड़ा
क्यों दो पाटों वाली साखी बाबा कबीर को रुला गई ।
गीतों की जन्म-कुंडली में संभावित थी ये अनहोनी
मोमिया मूर्ति को पैदल ही मरुथल की दोपहरी ढोनी
खंडित भी जाना पड़ा वहाँ जिन्दगी जहाँ भी बुला
गई।</poem>
Kumar anil
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