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Kavita Kosh से
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=रमानाथ अवस्थी}}{{KKCatKavita}}{{KKCatGeet}}<poem>'''धीरे-धीरे बात करो सारी रात''' प्यार से ।
हो सका तो शाम को सितारों के संग आऊँगा
धीरे - धीरे ताप हरो प्यार के अंगार से |
तन का सिंगार तो हजार हज़ार बार होता हैकितु किंतु प्यार जीवन में एक बार होता हैधीरे -धीरे बूँद चुनो जिन्दगी ज़िन्दगी की धार से ।
कोई नहीं विश्व में जो प्यार बिना जी सके
और गीत गाने वाले अधरों को सी सके
धीरे -धीरे मीत खींचो प्राण के सितार से ।
देख -देख हमें तुम्हें चाँद गला जा रहा
क्योंकि प्यार से हमारा प्राण छला जा रहा
धीरे -धीरे प्राण ही निकाल लो दुलार से ।</poem>