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{{KKRachna
|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा
|संग्रह=म्हारी पाँती म्हारै पांती री चितावां चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
परमातमा !
आ म्हारी अधूरी अरदास
मानखै री पीड़ नै
ऐड़ी खिमता दे ।
</Poem>