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कुछ मुक्तक / लाला जगदलपुरी

No change in size, 15:57, 30 नवम्बर 2010
'''3.'''
सूर्य चमका सांझ साँझ की सौगात दे कर बुझ गया
चाँद चमका और काली रात दे कर बुझ गया
किंतु माटी के दिये की देन ही कुछ और है
रात हमने दी जिसे वो प्रात दे कर बुझ गया ।
</poem>
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