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{{KKRachna
|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा
|संग्रह=म्हारी पाँती पांती री चितावां चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा
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[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
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<Poem>
कांई ओजूं ईं
थनै लखावै
म्हारी उडीक रो
एक-एक दिन
एक बरस रै उनमान।उनमान ।
थारी प्रीत रै मिस
मंदो पड़ग्यो
जगती में गमग्यो
आपणो सोवणो-सुरंगो बगत। बगत ।
</Poem>