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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
|संग्रह=आरती और अंगारे / हरिवंशराय बच्चन
}}
{{KKCatKavita}}<poem>ओ, उज्जयिनी के वाक्-जयी जगवंदन!
तुम विक्रम नवरत्नों में थे,
यह इतिहास पुराना,
पर अपने सच्चे राजा को
अब जग ने पहचाना,
तुमसे लज्जित शत विक्रम के सिंहासन ।
ओ, उज्जयिनी के वाक्-जयी जगवंदन !
तुम किस जादू के बिरवे
से वह लड़की काटी,
छूकर जिको गुण-स्वभाव तज
काल, नियम, परिपाटी,
गंधर्व, अप्सरा, यक्ष, यक्षिणी, सुरगण ।
ओ, उज्जयिनी के वाक्-जयी जगवंदन !
सूत्रधार, हे चिर उदार,
दे सबके मुख में भाषा,
तुमने कहा, कहो जब अपने
सुख, दुख,संशय, आशा;
सब लगे तुम्हारा ही करने अभिनंदन ।
ओ, उज्जयिनी के वाक्-जयी जगवंदन !
बहु वरदामयी वाणी के
कृपस-पात्र बहुतेरे,
देख तुम्हें ही, पर, वह बोली,
'कालीदास तुम मेरे';
तुम कवियों की ईर्ष्या के विषय चिरंतन ।ओ, उज्जयिनी के वाक्-जयी जगवंदन!</poem>