भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विश्राम / मधुप मोहता
Kavita Kosh से
एक पीढ़ी बुझ चुकी है
एक पीढ़ी जल रही है।
एक पीढ़ी और भी है
गर्भ में जो पल रही है।
इन अनेको पीढ़ीयों को
कौन सा आयाम दोगे।
कब इन्हें निर्वाण दोगे
कब मुझे विश्राम दोगे।
(अटल बिहारी वाजपेयी के लिए)