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विश्वास / पंकज सुबीर
Kavita Kosh से
अबकी बार जब गाँव से चला था
तो मेंड़ पर लगे आम के पेड़ ने
अपनी मंजिरयों वाली
सुगंधित छाँव में
रोक लिया
बोला
बेटा जब तुम पहले पहल शहर गए थे
तो हफ़्ते भर में आ जाते थे ,
फिर तुम महीने भर में लौटने लगे
और अब
साल भर में आए हो
हो सकता है
अगली बार तुम्हें आने में
एक जनम लग जाए
पर विश्वास रखो
मैं तब तक भी प्रतीक्षा करूँगा
और तुम्हें पहचान भी लूँगा
क्योंकि
मेरी एक एक शाख जानती है
उस स्पर्श को
जो तुम्हारे बचपन में
तुम्हारी देह से
मेरी छाल को मिला था
तुम्हारी संतानें शायद अब
इस गाँव में न लौटें
पर मुझे विश्वास है
तुम अगले जनम में
यहाँ अवश्य लौटोगे।