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विश्वास / मुकेश प्रत्यूष

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मैं कौधूंगा स्मृतियों में
दूर-दराज से आए और घनीभूत हुए बादल
बिखरेंगे जब बूंद-बूंद होकर
पैरों तले से फूटेगी और नासापुटों में भर जाएगी
बिसरी हुई एक चिन्ही-सी गंध
मैं कौधूंगा

जब चूएंगे महुए
झरेंगे हरसिंगार एक पूरी रात की अनवरत प्रतीक्षा के बाद
मैं कौधूंगा

जब लिखेगा कोई प्रेम-पत्र
घुटरुन लपकेगा कोई बच्चा
आरी की तीक्ष्णता-सी
 मैं कौधूंगा, जरुर कौधंूगा
-स्मृतियों में