भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विश्वास / स्मिता सिन्हा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उस दिन कितने विश्वास से
पूछा था तुमने
"माँ, तुम सबसे ज्यादा मज़बूत हो न!
तुम तो कभी नहीं रो सकती।"
और
मैं बस मुस्कुरा कर रह गई
तुम्हें पता है
उस दिन
उसी वक़्त
मैंने छुपाई थीं
कुछ बूँदें
जो आँखों की कोर से
छलक पड़े थे
हो तो ये भी सकता था
कि मैं रोती तुम्हारे सामने
फूटफूटकर
समझाती तुम्हें कि
रोने का मतलब
कमज़ोर होना नहीं
पर मैं चुप रही
तुम्हारा विश्वास बचाना
ज़रूरी लगा था मुझे
उस दिन...