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विश्व-श्री / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
देश-देश की स्वतंत्रता अमर रहे !
प्राण से अधिक
अपार प्रिय हमें स्वतंत्रता,
देश-प्रेम के लिए
कहीं नियत न अर्हता,
लोक-तंत्र-भावना सदा प्रखर रहे !
विश्व के असंख्य जन
अभेद्य हैं, समान हैं,
भाव एक हैं, यदपि
अनेक राष्ट्र-गान हैं,
साम्य-कामना ज्वलंत प्रति प्रहर रहे !
त्याज्य : जो मनुष्य की
मनुष्यता दहन करे,
ग्राह्य : जो उदार
मानवीयता वहन करे,
सर्व-धर्म-प्रेम की प्रवह लहर रहे !