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वीर-विद्रोही / केदारनाथ मिश्र 'प्रभात'

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बिजली बन चमकूँगा चंचल चलाक मैं
भय-तम विदारूँगा वीरता-उजाला से!
लोचन भयंकर हूँ तीसरा त्रिलोचन का
लूँगा सोख द्वेष का समुद्र कोच-ज्वाला से!

गरल न पीऊँगा अमृत-घट फोड़ दूँगा
प्यास यह बुझाऊँगा गर्म खून-प्याला से!
नोच-नोच धूल में मिलाऊँगा प्रसून-हार
साजूँगा चंडिका-चरण मैं मुंड-माला से!

नाश का बवंडर फूँक दूँगा मैं चारों ओर
विष बरसाके आज काल-सर्प काला-से!
सावधान! ताकना न भूल के भी मेरी ओर
कुटिल-कठोर हूँ मैं कुलिश-कराला-से!

भेजा बेध दूँगा द्रुत निर्भय चलाके नेजा
छेद के कलेजा खींच लूँगा आँत भाला से!
मैं हूँ विद्रोही कौन रोक भला सकता मुझे
झपटूँगा जब मैं गरज मेघमाला-से!
2.12.28