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वे / शक्ति चट्टोपाध्याय
Kavita Kosh से
थोड़ा-सा धान,
हमारे लिए ले आते हैं वे
फलों के बाग़, पोखर, रास्ते की छाया, हंस
हमारे लिए बारहों महीने
उनका यह कष्टबोध, सरल सम्पर्क, लगे रहना ...
कौन हैं वे? कौन हैं वे?
पुकारते हैं इन्द्रधनुष, पंछी, किंगफ़िशर ...
मैं कहता हूँ
कुछ भी हो, नहीं बताऊँगा।
एक दिन थे वे
क्षुब्धमन बीवी के आसरे पर
एक दिन निर्जन बग़ीचे में किसने देखी थी स्वप्नों की मुक्ति
और दिन? ठीक से याद नहीं ...
विदेशी पथिक ने ही शायद दिखाई थी राह!
मूल बँगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी