Last modified on 20 नवम्बर 2017, at 01:46

वे आते हैं मन में / तेजी ग्रोवर

वे आते हैं मन में अपने नाम से थके हुए फूलों की तरह।

मैं कई बार उनकी महक से जल के उस ओर गई हूँ।

इतने ख़ुदाओं, इतने नशीलों के आलिंगन में भी टूट ही
जाता था हृदय।

अपने साज़ उठाए वे आते हैं वन में, माँओं के सपनों में
शान्त हो गए शिशुओं की तरह।

इतना ख़ून बह चुका होता था प्रेम के अन्तहीन भ्रम में,
कोई भी घर कभी पूरा नहीं पड़ता था।

इतनी छायाओं से लिपटकर भी अनछुई रहती थी, जैसे
देह का अक़्स रही आई हो देह, जैसे कोई चूक गया हो
रचाना इस बिम्ब का, कि इतने क़रीब से भी होना, कभी
हो नहीं पाता था।