वे जो उजड़ गए / प्रमोद कौंसवाल
वे जो उजड़ गए
ख़ुश नहीं
नहीं हैं सालों से
उनके आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे
आवास के खंडहरों की भूल भुलैया में
बैठे लोग कह रहे उन्होंने सबको
बसा दिया
ग़लती होगी अगर मैं कहूं उजाड़ दिया
वे कहते हैं हमारा काम था
जहां तक हुआ सो हो गया
अब तो कोर्ट के हुक़्म की तामील होगी
व्यापारी बसे
बसाए गए किसान
खोले गए स्कूल
धर्मशालाएं
मंदिर एक से बढ़कर एक
गुरुद्वारा चमचमाता हुआ
मैदान ख़ासा लंबा
महाराज के वचन प्रवचन सुनने के लिए
किसी को बताओ क्या परेशानी
सुख-समृद्धि के लिए
देखो अपने शहर के ऊपर
चीड़ का एक बड़ा जंगल
धधकता है एक साल आग में
अगले साल
हरियाली ही हरियाली
हां पानी बहुत है पर वह बहुत नीचे है
हम दावा नहीं कर सकते हैं
कल से नहीं मिलेगा
मटमैला पानी
इस काम के लिए भाई लोगों एक निगम है
एक बोर्ड है जहां के दफ्तर का बोर्ड
बरसात के पानी से जंग खा चुका
ध्यान से पढ़ो उसे लिखा है जल निगम