वे लेखक नहीं हैं / चन्द्र
वे लेखक नहीं हैं — खगेन्द्र ठाकुर
वे लिखते हैं
लेकिन काग़ज़ पर नहीं
वे लिखते हैं धरती पर ।
वे लिखते हैं
लेकिन क़लम से नहीं
वे लिखते हैं
हल की नोंक से ।
वे धरती पर वर्णमाला नहीं
रेखाएँ बनाते हैं
दिखाते हैं वे
मिट्टी को फोड़कर
सृजन के आदिम और अनन्त स्रोत
वे तय करते हैं
समय के ध्रुवान्त
समय उनको नहीं काटता
समय को काटते हैं वे इस तरह कि
पसीना पोंछते-पोंछते
समय कब चला गया
पता ही नहीं चलता उन्हें
वे धरती पर लिखते हैं
फाल से जीवन का अग्रलेख
वे हरियाली पैदा करते हैं
वे लाली पैदा करते हैं
वे पामाली सँचित करते हैं
शब्दों के बिना
जीवन को अर्थ देते हैं
ऊर्जा देते हैं, रस देते हैं, गन्ध देते हैं,
रँग देते हैं, रूप देते हैं
जीवन को वे झूमना सिखाते हैं
नाचना-गाना सिखाते हैं ।
लेकिन वे न लेखक हैं
और न कलाकार,
वे धरती पर
हल की नोंक से लिखते हैं,
उन्हें यह पता भी नहीं कि
लेखकों से उनका कोई रिश्ता है क्या ?
उनमें कोई सर्जक क्षमता है क्या ?