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वैतरणी का भँवर / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
अरे भाई, वह मंत्राी जी हैं, इसका ख्याल रखो
तुम कहते हो, ‘हुए मंत्राी तो आना भूल गए
पंचसितारा जाकर घर का दाना भूल गए’
दर्शन की इच्छा को भैया वर्षों टाल रखो ।
क्या अखबार नहीं पढ़ते हो, नहीं रेडियो सुनते
क्या टीवी पर नहीं देखते, मंत्राी जी लन्दन में
कल पेरिस में, परसों चीन, मलाया तरसों दन मंे
फुर्सत है उनको (?) पागल हो; अपना माथा खुनते ।
बीस बरस दम मारो भैया, अगर बचा है दम तो
मंत्राी जी कुछ मंत्रा पढ़ेंगे, दुख छूमन्तर होगा
बँधा हुआ सबकी बाँहों पर सुख का मंतर होगा
महामृत्युंजय जाप करो फिलहाल पास है यम तो ।
कैसे हाथ लगेगा भैया सतयुग, द्वापर , त्रोता
कलियुग की वैतरणी में जब डूब रहा नचिकेता ।