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वो जो हमसे बिछड़ने लगे / कुमार अनिल
Kavita Kosh से
वो जो हमसे बिछड़ने लगे
दिल में काँटे से गाड़ने लगे
बेवफाओं से था सब गिला
तुम भला क्यों बिगड़ने लगे
अब कहाँ और तुमको रखें
याद के घर उजड़ने लगे
उनसे करके उम्मीदे वफ़ा
खुशबूओं को पकड़ने लगे
याद की आंधियां फिर उठीं
ज़ख्म फिर से उघड़ने लगे
फिर से पत्थर कोई मारिये
गम के घेरे सिकुड़ने लगे
चाँद उनको 'अनिल' क्या कहा
वो गगन पे ही चढ़ने लगे