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वो नहीं था मैं / आनंद कुमार द्विवेदी
Kavita Kosh से
यूँ खुश तो क्या था, मगर गमजदा नहीं था मैं,
तुम मुझे जो समझ रहे थे, वो नहीं था मैं |
मेरी बर्बाद दास्ताँ , है कोई ख़ास नहीं,
जब मेरा घर जला, तो आस पास ही था मैं |
चंद लम्हे, जो मुझे जान से भी प्यारे थे,
उनकी कीमत पे मैं बिका,मगर सही था मैं |
दुश्मनो को भी सजा, प्यार की ऐसी न मिले,
मेरी चाहत थी कहीं और, और कहीं था मैं |
तुमने बेकार मेरा क़द बढा दिया इतना,
फलक तो क्या जमीन पर भी कुछ नहीं था मैं |
घर उदासी ने बसाया है, जहां पर आकर,
शाम तक उस जगह ‘आनंद’ था, वहीं था मैं |