शकट-तृणावर्त निपात / कृष्णावतरण / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
मास तीनिए बितल उतान सुतल सुत लेल करोट
हुलसि यशोदा बाँटि रहलि छथि सबकें मंगल-रोट
मगन भेलि पार्श्वक परिवर्तन विधि पुरइत सब संग
सुनल न रोदन, बढल छटपटी, बालक चंचल अंग
पद पटकल तँ टुटल पलगड़ी, घट-पट टुटि-फुटि गेल
बुझल शक्तिशाली शिशुपद आघातक फल अछि भेल
शंकाकुल रोहिणी, बेआकुलि जसुमति कोर उठाय
शुभ-शुभ चुमबय चुमय चाहलनि, सहसा से अकुलाय
भार ततेक बुझल बोझिल नहि सकलि कोरमे राखि
कहुना पलङ उपर दय सब मिलि अद्भुत शिशु ई भाखि
तावत् तृणावर्त मायाबी कंसक दिससँ धाय
माया रचि अंधड़ उठाय शिशु सहित पलङ उड़िआय
बिड़रो तेहन उठल छल धूलिक तृण तरु घूर्णित भेल
पलङ सहित शिशु तृण आवर्तित भय नभ पथ उड़ि गेल
हाहाकार मचल व्रजमे जन-जन छल आकुल घोर
किन्तु पलहिमे शान्त प्रान्त जेँ थम्हल अंधड़क जोर
देखल चौंकि सबहि, विकराल असुर अछि खसल उलंग
उपर कन्हैया किलकि रहल छथि, जनु ही चढ़ल पलंग
अद्भुत दृश्य देखितहिँ विस्मित हर्षितचित जत लोक
निबिड़ तिमिर भूगर्भहि जनु उगि जाय मगन-आलोक
देव-पितर मनबथि, चढ़बथि पूजा-पातरि शुभ मानि
रक्षा हित कत धान्य-धेनु-धन बितरथि द्विज नँदरानि
पढ़ि-पढ़ि मन्त्र कलश-जल सींचथि जड़ी यंत्र भुजबध
द्विजगण स्वस्तिवचन कत बाँचथि नहि हो पुनि प्रतिबंध