शत-शत नमन / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
जाम शहादत का पीकर जो दुनिया में हो गए अमर।
सौ-सौ बार नमन करता मैं उनको नत-मस्तक होकर।।
थे सपूत माता के निज कर्त्तव्य निभा कर चले गए,
मरे स्वयं पर मृत समाज को, अमृत पिला कर चले गए,
माँ के चरणों में सादर सिर-सुमन चढ़ा कर चले गए,
देशभक्ति के गीत अभय आजीवन गाकर चले गए,
गर्व आज करता है भारत जिनकी गौरव-गाथा पर।
सौ-सौ बार नमन करता मैं उनको नत-मस्तक होकर।।
कूद पडे़ जो स्वत्व-समर में डरे न लाठी, गोली से,
दिशा-दिशा को किया निनादित इंक़लाब की बोली से,
जूझ पड़े निश्शस्त्र और निर्भीक शत्रु की टोली से,
मातृभूमि की पूजा अर्चना रक्त की रोली से,
वार दिया प्रण पर प्राणों को कभी न जो चूके अवसर।
सौ-सौ बार नमन करता मैं उनको नत-मस्तक होकर।।
नौनिहाल माँ केकितने ही हँसते-हँसते जेल गए,
पड़ी मुसीबत जो भी सिर ख़ुशी-ख़ुशी सब झेल गए,
आज़ादी के दीपक में ,भर निज लोह का तेल गए,
शान बचाने को स्वदेश की स्वयं जान पर खेल गए,
चूम लिया फाँसी का फंदा नव-उमंग अंतर में भर।
सौ-सौ बार नमन करता मैं उनको नत-मस्तक होकर।।
बलि-पथ को स्वीकार कर लिया देश प्रेम की पी हाला,
उमड़ पड़ा था दीवानों का, दल बादल-सा मतवाला,
अमित यातनाएँ सहकर भी नहीं प्रतिज्ञा को टाला,
है जिनका यशगान जगत् को सुना रहा जलियांवाला,
जन-जन के हैं हृदय-पटल पर अंकित जिनके स्वर्णक्षर।
सौ-सौ बार नमन करता मैं उनको नत-मस्तक होकर।।