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शब्दों से रूठे बच्चे / सुनील कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
बैठे रहे
आठ-नौ बच्चे
बिन बोले, बिन झगड़े,
बिन उछले-कूदे
बस बैठे ही रहे
चलाते रहे उंगलियाँ मोबाइल पर
तीन-साढ़े तीन घंटे।
मानो उंगुलियों से जिज्ञासाएँ
टटोलते रहे बच्चे
लगता है रूठ गये,
शब्दों से, बातों से, प्यारे से बच्चे
है यह सवाल यक्ष सा
अपनी ही जिद्द पर अड़ा
संवादों को, शब्दों को,
फिर कैसे इनसे मिलवाया जाये?
माना स्माइली और इमोटिकॉन,
कठिन नहीं शब्दों की तरह,
पर बोल कहाँ पाएंगे,
वो बच्चों की तरह।
गेम, गज़ट, बोट और रोबोट
बतिया पाएंगे क्या
बातों की तरह!