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शब्द / जयप्रकाश मानस
Kavita Kosh से
अपने अँधेरे में पड़ा था चुपचाप
आदमी उसके पास पहुँचा
जाग उठा वह
नहा उठा रोशनी से आदमी भी
सिर्फ़ इतना ही नहीं
नहा उठी सारी दुनिया उसकी रोशनी में
निहायत नये चीज़ – अपने नामकरण संस्कार से
संस्कारित हो उठा सारा संसार
जैसे शिशु के आने पर नाच उठता है बाँझ का परिवार
(रचनाकाल-12 मई 2007)