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शरद / अन्द्रेय वज़निसेंस्की / श्रीकान्त वर्मा

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पँख मारती हैं पनडुब्बियाँ । पार्कों में पगडण्डियों पर
छुपते हुए मकड़ी के जाल और
अन्तिम बायसिकल के पहियों के छड़ों से
झरती हुई मद्धिम-सी रोशनी ।

सुनो, क्या कहना चाहती है,
विदा के लिए जाकर दस्तक दो द्वार पर आख़िरी मकान के,
एक स्त्री, जो रहती है उसमें,
उम्मीद नहीं करती कि ब्यालू पर आएगा पति,

वह मेरे लिए खोलेगी द्वार
और कोट से लिपट मेरे सीने पर गड़ा अपना मुख
हँसती हुई ओंठ बढ़ाएगी वह मेरी ओर
फिर सहसा शलथ पड़्ती, अन्तस के कोर
को समझ लेगी, खेतों में शरद की पुकार
हवा के बिखरते हुए बीज, परिवारों का टूटना,
अभी भी जवान,काँपती ठण्ड में,
सोचा करेगी वह
कैसा है खेल कि और तो और फलता है सेब का वृक्ष भी
बियाती है भूरा बछड़ा बूढ़ी गाय

जीवन पनपता है ओक के खोखल में,
चरागाहों में, मकानों में, अन्धड़ गुर्राते हुए जंगल में,
पकती हुई बालियों के संग और छाया की तरह पवनमुर्ग के साथ,
आँसू बहाएगी वह, इच्छाहत

बुदबुदाएगी वह, किसके लिए हैं
ये हाथ, ये छातियाँ ? क्या कोई मतलब है
जैसे मैंने जीया, वैसे जीये जाने का ?
चूल्हा सुलगाने, दिनचर्या दुहराने का ?

मैं उनको अपने वक्ष से लगा लूँगा
मैं, जो ख़ुद नहीं ढूँढ़ पाया हूँ अर्थ इस जीने का —
बाहर, पहले हिमपात में,

खेत बदलते हैं अलुम्युनियम में
खेतों के पार, अन्धकार, भूरी, मटमैली
मेरे पैरों की छाप, निकल जाती है दूर
स्टेशन की तरफ़, चुपचाप ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : श्रीकांत वर्मा

लीजिए, अब यही कविता अँग्रेज़ी अनुवाद में पढ़िए

लीजिए, अब यही कविता इतालवी अनुवाद में पढ़िए
               Andrej Voznesenskij
                        Autunno

[a S. Ščipačev]

Sciabordio d’ali d’anitra. E, insieme,
per il viottolo segreto,
scintillio d’ultime ragnatele,
di ultimi viaggi in bicicletta.

Su, segui tu pure il loro esempio.
Bussa all’ultima casa per l’addio.
Sai che una donna abita lí dentro:
non aspetta per la cena il marito.

Per me, lei tirerà svelta il paletto,
si stringerà con la guancia alla mia giacca,
ridendo, lei, mi tenderà la bocca.
Ma d’improvviso, spenta, capirà tutto:
l’invito autunnale dei campi, il volo
dei semi, le famiglie che si dissolvono…

Lí, infreddolita e giovane,
starà a pensare, ecco,
che il melo, anche lui, porta il suo frutto,
che la Bianca, anche lei, ha il suo vitello.

Che la vita fermenta in cave querce annose,
nei campi, nelle case, dentro boschi ventosi.
A loro, germinare, stridere di richiami;
a lei, invece gemere, e struggersi invano.

Che ardore in quel sussurro delle labbra:
«Per cosa, le spalle, i seni, le braccia,
e vivere, accendere il fuoco,
e, la mattina, al lavoro?»

Le poserò le mani sulle spalle...
perché che cosa posso dirle?
Dai vetri, intanto, nella prima brina,
s’aprono fuori campi d’alluminio.
Su loro, nere, su loro, argentee,
allungandosi laggiú, sino alla linea
ferroviaria, arriveranno le mie impronte.

Tradotto da Mario Socrate, Maria Olsoufieva

अब पेश है मूल रूसी भाषा में यही कविता
           Андрей Вознесенский
                      Осень

     С. Щипачеву

Утиных крыльев переплеск.
И на тропинках заповедных
последних паутинок блеск,
последних спиц велосипедных.

И ты примеру их последуй,
стучись проститься в дом последний.
В том доме женщина живет
и мужа к ужину не ждет.

Она откинет мне щеколду,
к тужурке припадет щекою,
она, смеясь, протянет рот.
И вдруг, погаснув, все поймет —
поймет осенний зов полей,
полет семян, распад семей...

Озябшая и молодая,
она подумает о том,
что яблонька и та — с плодами,
буренушка и та — с телком.

Что бродит жизнь в дубовых дуплах,
в полях, в домах, в лесах продутых,
им — колоситься, токовать.
Ей — голосить и тосковать.

Как эти губы жарко шепчут:
«Зачем мне руки, груди, плечи?
К чему мне жить и печь топить
и на работу выходить?»

Ее я за плечи возьму —
я сам не знаю, что к чему...

А за окошком в юном инее
лежат поля из алюминия.
По ним — черны, по ним — седы,
до железнодорожной линии
Протянутся мои следы.

1959