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शहतूत / सुरेश विमल
Kavita Kosh से
कितने प्यारे हैं शहतूत
रस के झारे हैं शहतूत
तोड़ तोड़कर बड़े जतन से
माली जी ने रखे हैं
और किसी से नहीं सिर्फ़
मधुमक्खी ने ही चखे हैं।
छुई-मुई से सभी फलों में
सबसे न्यारे हैं शहतूत।
घूम रहे थे बैठ बर्फ की
सिल्ली पर बाजारों में
पहुँच रहे हैं बस्ती-बस्ती
गलियों में, घर द्वारों में।
बच्चों से बूढ़ों तक सब के
बड़े दुलारे हैं शहतूत।