भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शहर में साँप / 53 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शहर के साँप
भगवान से प्रार्थना कैर रहल रहै
हे भगवान!
हमरा गाँव लौटा देॅ
शहर में एैंख धुंधलाय गेलै
पहचान भी खत्म होय गेलै
संवेदना तेॅ कहिया मैर गेलै
यदि आरो रैह गेलिये कुछ दिन यहाँ
तेॅ अपने सेॅ भी पूछवै एक दिन
हम्में केॅ छिकिये।

अनुवाद:

शहर का साँप
भगवान से प्रार्थना कर रहा था
हे भगवान!
मुझे गाँव लौटा दो
शहर में आँखें भी धुंधला-सी गयीं।
पहचान भी खत्म हो गयी
संवेदना तो कब की मर गयी
यदि और रहा कुछ दिन यहाँ
तो अपने से भी पूछूंगा एक दिन
मैं कौन हूँ।