Last modified on 8 मई 2011, at 22:50

शादी पर / नरेश अग्रवाल

सारा घर चमक रहा है
फूलों और रोशनियों से
जैसे बाग और तारें गले मिल रहे हों एक साथ
हर किसी के लिए स्वादिष्ट पदार्थ
जिसे एक कौर चाहिए उसके लिए दो
पानी की जगह शर्बत
बिना इत्र के कोई हवा नहीं
जहाँ भी पाँव रखो
कालीन का मखमली स्पर्श
जैसे शादी में साधारण लोग नहीं
देवता उतरे हैं दूसरे लोक से
आयोजकों पर इतना दबाव
जरा सी चूक कि हुई मुख पर शर्म की लालिमा
इतनी सारी खुशियों के फव्वारे के बीच
क्या गुजरती है एक पिता पर,
किसको है खबर ।