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शाम : एक मंज़र / शीन काफ़ निज़ाम
Kavita Kosh से
बिलखती हवाओं के हाथों में
ज़ख़्मखुर्दा पत्ते
कुहर में
गुमशुदा दैर की गूँजती घंटियाँ
ख़ौफ़ से साकित
बिन परिंदे के पेड़