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शायद / विष्णुचन्द्र शर्मा
Kavita Kosh से
रोशनी का एक गुच्छा
चमक रहा है
शायद औरत
रोटी पो रही है
शायद रोते बच्चे को
चाँद की नाँव पर
सैर करा रही है!