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शायद कोई गीत बने / शशि पाधा
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मोरपंखी कल्पनाएँ
ओस भीगी भावनाएँ
अक्षर अक्षर बरस रहे हैं
शायद कोई गीत बने।
लहरें छेड़ें सुर संगीत
माँझी ढूँढे मन का मीत
नील मणि सी रात निहारे
चंदा की अँखियों में प्रीत
तारक मोती झलक रहे हैं
शायद कोई गीत बने।
वायु के पंखों में सिहरन
डार-डार पायल की रुनझुन ,
भंवरे छेड़ें सुर संगीत
कलिकाएँ खोलें अवगुंठन ,
मधुपूरित घट छलक रहे हैं
शायद कोई गीत बने।
दो नयनों से पी ली मैंने
तेरे अधरों की मुसकान
धीमे-धीमे श्वासों ने की
तेरी खुशबू से पहचान ,
पलकों में सुख स्वपन सजे हैं
शायद कोई गीत बनें।