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शायद तुम आओगे / अशोक वाजपेयी
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शायद तुम सुबह आओगे-
शायद सूर्य तुम्हें अपने रथ पर लाएगा,
शायद हवा तुम्हें मेरे द्वार तक लाएगी,
शायद धरती चौकसी करेगी,
जब तक तुम सही सलामत नहीं पहुँच जाते।
मौसम की ठण्ड सिहरेगी
गरमाहट से,
आकाश की नीलिमा चकित होगी
रहस्य पर,
शहर बूझ नहीं पाएगा
पहेली को,
देवता भौचक दिखेंगे
गुम हुए तारों की तरह।
कामना की सिगड़ी से
ताज़ी रोटी की तरह,
तुम आओगे
शायद
सुबह